और यूँ ही देखते दिखाते

गुम हो गई कथायें कितनी।.....


मन यायावर तन बनजारा

और विचार हुये आवारा

इसे सहेजें उसे सँवारें

जब उलझन में छूटा सारा

क्यों बच गईं व्यथाएँ  इतनी।।...


इसकी इनकी उसकी बारी

इसी तरह से सबकी बारी

सब अपने अपने पर रोये

रो न सके सब अपनी बारी

मृत्यु सुने विपदायें कितनी।।.......


कुछ अपने कुछ रहे पराये

कुछ अनजाने कुछ हमसाये

जगत मंच पर सबने अपने 

दिए गए किरदार निभाये

दे दे गए व्यथाएँ कितनी।।...


सुरेश साहनी

चित्र Ashok Kumar Singh जी की वाल से

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है