इश्क़ मुहब्बत की बीमारी ले लूँ क्या।
दिल देकर के दर्द उधारी ले लूँ क्या।।
बदनामी तो है इसमें पर नाम भी है
आज शहर से रायशुमारी ले लूँ क्या।।
उन की मस्त निग़ाहें तीर चलाती हैं
मैं भी बरछी ढाल कटारी ले लूँ क्या।।
डर लगता है जब वो माइल होता है
तब कहता है जान तुम्हारी ले लूं क्या।।
प्यार वफ़ा के चार कदम चल पाओगे
वरना बोलो शान सवारी ले लूं क्या।।
सुरेश साहनी कानपुर
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