मुझको मै भी नहीं बदल पाया।
वक़्त रहते नहीं सम्हल पाया।।
याद करके कोई बताओ ज़रा
दो कदम कौन साथ चल पाया।।
तेरी यादों से क्या बहलता दिल
साथ तेरे न जो बहल पाया।।
आसमां का गुरुर वाज़िब है
मैं वहाँ तक कहाँ उछल पाया।।
मौत पीछे थी उम्र भर लेकिन
मैं ही आगे नहीं निकल पाया।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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