कोई कह रहा मयकशी में मज़ा है।

कोई कह रहा तिश्नगी में मज़ा है।।

जो कहते थे लाएंगे हम ही उजाला

वो कहते हैं अब तीरगी में मज़ा है।।

अज़ब उसके बीमार हैं कह रहे हैं

उन्हें उसकी चारागरी  में मज़ा है।।

ग़मे-इश्क़ की लज़्ज़तें हम से पूछो

असल तो यही आशिक़ी में मज़ा है।।

तुम्हें मौत से उज़्र है भी तो क्यों है

बताओ कहाँ ज़िन्दगी में मज़ा है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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