कभी कभी सच ऐसे भी जिन्दा रखा है।

बोला है पर चेहरे पर पर्दा रखा है।।

तुम मेरी पहचान के लिए व्याकुल क्यों हो

क्या मेरे चेहरे पर सत्य लिखा रखा है।।

क्या चेहरा दर चेहरा सच बदला करता है

आखिर ऐसे बदलावों में क्या रखा है।।

अब उसकी बातों को सारे सच मानेंगे

उसने अपना नाम तभी बाबा रखा है।।

साथ चलो यदि चल न सको तो मिल कर बोलो

अपना और पराया क्या फैला रखा है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है