सोच रहा हूँ कि मैं भी कुछ विवादित लिखूं।फिर किसी धार्मिक या वैचारिक विरोधी से सेटिंग करूँ। वैसे भी मेरी कई डायरी कविताएँ रद्दी में जा चुकी हैं। ससुरा रद्दी वाला भी पाँच रूपये किलो से ज्यादा देने को तैयार नहीं होता हैं।अख़बार की रद्दी तो आठ रूपये में ले लेता है।
लेकिन लिखा क्या जाए।सोच रहा हूँ लिख दूँ कि ईसा प्रभु हमारे मुहल्ले में पैदा हुए थे।उनके पिता का नाम फलाने त्रिपाठी था। फिर सोचता हूँ कि बहिन जी न बुरा मान जाएँ और कहें कि सारे मसीहां सवर्णों के घर क्यों पैदा होते हैं।फिर लिखना था तो मिश्रा लिख देते। मिश्रा हमारे महासचिव भी हैं। फिर अचानक ध्यान आया कि कुरील जी बसपा छोड़ चुके हैं।वे नाराज हो जायेंगे।कल ही उन्होंने बयान दिया है कि बसपा दलित विरोधी है।
फिर लिखने के लिए किसी शोध या विज्ञान की जरूरत भी क्या है।लेखक की मर्जी भी तो कोई चीज होती है।क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन लोगे।लेखक लिख दे कि पंडित नेहरू इंग्लैंड में पैदा हुए थे तो हुए थे।कोई क्या कर लेगा ।अब तो शासन भी नहीं है।
लेकिन ये ससुरी अंतरात्मा का क्या करें!बार बार जाग जाती है।उसी के साथ ये ईमान भी बेईमानी पर उतर आता है। कहता है ऐसा लिखने से बेहतर है मत लिखो। प्रायोजित लिखने से अच्छा है वेश्यावृत्ति अपना लो। लेकिन इसमें भी डर है।कहीं बार बालाओं के समर्थक नाराज हो गए तो?जब सम्मान ही नहीं बचेगा तो वापस क्या करेंगे?बाबा जी का घंटा????
व्यंग सुरेश साहनी
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