लोग आशंकित हैं बेशक रात से

भयग्रसित हैं लोग पर किस बात से

रात के होने से ढल जाने तलक

अजनबी घड़ियों के टल जाने तलक

लोग सूरज को लपकना चाहते हैं

धूप की छतरी में रहना चाहते हैं

लोग ऐसे भी हैं जो अपने लिए

धूप को लॉकर में रखना चाहते हैं

धूप सबके पास आना चाहती है

धूप दो पल मुस्कुराना चाहती है

धूप हंसना और खिलना चाहती है

धूप अब उनसे ही मिलना चाहती है

जो अंधेरों में  भी जीना जानते हैं

जो निशा में भी चमकना जानते हैं

सुरेश साहनी

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