कुछ वक्त मुझे देना कल तुमपे लिखूंगा कुछ।

कल तुम भी सुनाना कुछ कल मैं भी सुनूंगा कुछ।।


जीने की तमन्नाएं दम तोड़ चुकी हैं पर

तुम साथ अगर दोगे मैं और जियूँगा कुछ।।


तनहाई में काटे हैं दिन रात बहुत मैंने

इस दर्द को समझो तो मैं तो न कहूंगा कुछ।।


नाराज़ रहो लेकिन पहलू में बने रहियो

तुम पास बने रहना मैं दूर रहूंगा कुछ।।


जब रात के आंगन में वो चाँद नज़र आये

शरमा के सिमटना तुम मैं और खुलूँगा कुछ।।


दिखता है तुम्हे मुझमे रूखा सा कोई चेहरा

दुनिया के लिए कुछ हूँ मैं तुमको मिलूंगा कुछ।।


हो लाख उमर लम्बी, पर उसकी वज़ह तुम हो

तुम साथ नही दोगे तो ख़ाक जियूँगा कुछ।।


सुरेश साहनी,कानपुर

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