तीरगी से गुज़र गया होगा।

पर उजालों से डर गया होगा।।


अजनबीयत से भर गया होगा।

जब वो अपने शहर गया होगा।।


सर हथेली में ले लिया अपना

इश्क़ वालों के घर गया होगा।। 


हुस्न को इश्क़ से अज़ीयत है

कोई गुमराह कर गया होगा।।


यार को अपने सामने पाकर

आईना भी सँवर गया होगा।।


कैसे ढूंढूं वजूद को अपने

राम जाने किधर गया होगा।।


उसके चेहरे से आदमी गुम है

तय है एहसास मर गया होगा।।


मेरी ग़ज़लों से मिल के लगता है

मुझमें ग़ालिब उतर गया होगा।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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