उसे जो रोशनी से उज़्र होगा।
तो सच की पैरवी से उज़्र होगा।।
मौजें सर पटकती हैं मुसलसल
हमारी तिश्नगी से उज़्र होगा।।
हमारे घर मे चाँद उतरा हुआ है
हमें क्यों चांदनी से उज़्र होगा।।
वो कारोबारे-नफ़रत में लगा है
उसे क्यों तीरगी से उज़्र होगा।।
खुशी के अश्क़ हम पहचानते हैं
भला क्यों शबनमी से उज़्र होगा।।
छुपाते हैं ये अहले हुस्न वरना
किसे दीदावरी से उज़्र होगा।।
अज़ीयत होगी अहले हुस्न से भी
उन्हें जो आशिक़ी से उज़्र होगा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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