आपका दिल ही स्याह है साहब।
फिर मेरा क्या गुनाह है साहब।।
नज़्म होती तो दाद ले लेते
ये मेरे दिल की आह है साहब।।
शादमानी कहाँ से ले आयें
अपनी दुनिया तबाह है साहब।।
बेवफाई को भूल जाये हम
बेतुकी सी सलाह है साहब।।
और किस्सा तवील मत करिए
ज़ीस्त अपनी कोताह है साहब।।
अपनी मंज़िल ही मुझको याद नहीं
राह तो फिर भी राह है साहब।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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