ग़म के दरिया खंगाल आये हैं।
ज़ीस्त अब तक निकाल आये हैं।।
मौत कब कोशिशें नहीं करती
हम ही ये वस्ल टाल आये हैं।।
जितना हालात ने दबाया है
हम में उतने उछाल आये हैं।।
तीरगी में थी दिल की तन्हाई
दीप यादों के बाल आये हैं।।
हम भी डूबे थे इश्क़ में लेकिन
ख़ुद को फिर भी सम्हाल आये हैं।।
ये नहीं इश्क़ में हमी टूटे
हुस्न पर भी जवाल आये हैं।।
नेकियों का हिसाब वो जाने
हम तो दरिया में डाल आये हैं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment