हम हर इक रस्मो-रवायत से अलग चलते हैं।

दीनो-मज़हब से ,क़यादत से अलग चलते हैं।।

अपनी आदत है हवाओं के मुख़ालिफ़ चलना

हम नियाबात की आदत से अलग चलते हैं।।

सुरेश साहनी

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