मंज़िलों  मरहलों  से  गुज़रते रहे।

दमबदम दिनबदिन हम संवरते रहे।।


जीस्त ढलती रही अपनी रौ में मग़र

हम दमकते चमकते निखरते रहे ।।


हम मिले जब जहाँ मुस्कराकर मिले

लोग  रोते  रहे   आह  भरते  रहे।।


आप चलते रहे इक तकल्लुफ़ लिए

हम हबीबों के दिल में उतरते रहे।।


वो हया बन के हममे सिमटती रही

हम मुहब्बत थे उन पर बिखरते रहे।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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