हम कहाँ इस कदर पराये थे।
हम तो इक दूसरे के साये थे।।
और शिकवे-गिले कहाँ करते
आप ही ने तो ज़ुल्म ढाये थे।।
हम गुनहगार है तो किसके हैं
आपके नाज़ ही उठाये थे।।
आपने आज भी कहाँ माना
आप तब भी समझ न पाये थे।।
मेरे रोने पे रोईं थी महफ़िल
सिर्फ इक आप मुस्कुराये थे।।
अब वो दिन लौट के न आएंगे
आपने संग जो बिताये थे।।
आप ही अब जबाब दे दीजै
आप ही ने सवाल उठाये थे।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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