देर से आया पशेमाँ भी हुआ

चार दिन में चाँद कैसा हो गया।।

प्यार पति से या अक़ीदा रस्म का

भूख का एहसास दूना हो गया।।

चाँद को था चाँद का यूँ इंतज़ार

मैं वहां रहकर पराया हो गया।।

उनका मुंह मीठा किया,पानी दिया

खुश हुए वो और करवा हो गया।।


मेरी एक पुरानी नज़्म

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