मेरे सवाल उठे वक्त का जवाब गया।
नज़र झुकाये हुए ओढ़ कर नक़ाब गया।।
मिटी है क्या कभी नस्लें किसी परिंदे की
गया तो हार के सैयाद या उक़ाब गया।।
बुरी निगाह से उठ उठ के हाथ हार गए
कहीं न खार गये ना कहीं गुलाब गया।।
के ज़ुल्म सह के फरियाद की जुबां न थकी
गया तो हार के ज़ुल्मी का इज़तेराब गया।।
गया न कुछ भी कहीं इश्क़ के भटकने पर
गयी तो शर्मो-हया हुस्न का हिज़ाब गया।।
सुरेश साहनी
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