तुम गए तो ये घर उदास हुआ।

रोई तुलसी शज़र उदास हुआ।।

कमरे कमरे में याद बन बिखरे

दिल तुम्हें याद कर उदास हुआ।।

रोया आँगन सहन में चुप सी है

दिन कोई रात भर उदास हुआ।।

तुम गए सिर्फ़ चार दिन के लिए

और दिल उम्र भर उदास हुआ।।

अपने बीमार का भरम रख ले

और कह चारागर उदास हुआ।।

तेरी रुसवाईयों का डर लेकर

मेरे मन का शहर उदास हुआ।।

जिस्मे-फ़ानी भी साथ है कब तक

मैं यही सोचकर उदास हुआ।।

सुरेश साहनी, कानपुर

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