धूप हमें तुम यूँ लगती हो 

जैसे इक यादों की चादर 

या माँ की थपकी के जैसी

हौले हौले तन मन

गर्माहट से पुलकित करती

हर थकान को हर लेती हो

और तुम्हारा होना जैसे

किसी दोस्त के साथ बैठना

या जैसे माँ के आँचल में

बच्चे जैसा दुबके रहना

या फिर बापू के कंधे पर

चढ़कर सारी दुनिया सा पा लेना


या फिर नर्म रजाई लेकर 

बिस्तर में ही आड़े तिरछे

काफी की फरमाइश करना

फिर काफी के साथ तुम्हारा

थोड़ा सकुचाते शरमाते

मेरे पहलू में आ जाना

फिर धीरे से यह भी कहना

छोड़ो! बच्चे देख रहे हैं, 

धूप सेकना ही लगता है


धूप तुम्हारी कितनी परतें

ओढ़ी और बिछाई मैंने

पर तुम अनासक्त प्रेमी सा

हाथ छुड़ाकर चल देती हो

ऐसा करना ठीक नहीं है

साथ मेरा देना जाड़े भर.....

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