क्या तुझे पता है तेरी माँ के
प्राण तुम्हीं में बसते हैं
एक पिता के स्वप्न और
अरमान तुम्ही में बसते हैं
अगर पता है तो सम्हाल ले
जो घर की मर्यादा है
क्यों उनके यक़ीन को तू
खो देने पर आमादा है
क्या तेरी माता से बढ़कर
प्यार दूसरा दे देगा
और पिता से अधिक तुझे
उपहार दूसरा दे देगा
क्या घर वालों से अधिक कोई
अपनापन दूजा दे देगा
यह लाड़-दुलार-सनेह और
तन मन धन दूजा दे देगा
यह प्रेम नहीं जो घर से छिप कर
वन उपवन में रोती है
इस काम वासना के सागर
में निज अस्तित्व डुबोती है
रोना है माँ के सम्मुख रो
जो साथ तेरे खुद रोयेगी
दुख-पीड़ा-व्यथा पिता से कह
खुशियों घर चलकर आएंगी
जा बेटी घर जा लिख पढ़ कर
कुल और समाज का गौरव बन
इन छलनाओं पर भ्रमित न हो
जा घर आंगन की शोभा बन
जब तन मन से जीवन के प्रति
वे तुमको विकसित पाएंगे
माँ बाप स्वयं तेरी पसन्द के
साथी तक ले जाएंगे.....
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