यार कुछ मस्तियों की बात करो।
हमने माना कि रोज़गार नहीं
नापने के लिए सड़क तो है
क्रीज़ अपनी कड़क नहीं तो क्या
अपनी हालत ज़रा कड़क तो है
सर छुपाने को छत नहीं तो क्या
चाँद पर बस्तियों की बात करो....
साहिलों पर बहुत चले लेकिन
साहिलों पर गुहर नहीं मिलते
डूब कर देखते हैं मुस्तकबिल
यह किनारे अगर नहीं मिलते
नाव पर ज़िन्दगी कटी होगी
डूबती किश्तियों की बात करो.....
इस जवानी को कुछ नहीं दिखता
घरऔ,परिवार की दशा क्या है
सब नशा करते हैं कोई न कोई
धर्म इससे बड़ा नशा क्या है
मन्दिरों-मस्ज़िदों की बात करो
हुस्न की हस्तियों की बात करो.....
Suresh Sahani , Kanpur
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