जागो जागो फिर परशुराम!
निर्बल जन का सुन त्राहिमाम।।.....
अब के कवि कब लिख पाते हैं
अपने अन्तस् की वह पुकार।
जिसको सुन सुन कर परशुराम का
परशु उठा इक्कीस बार।।
आओ पुनि कर में परशु थाम
हैं सहसबाहु अब भी तमाम।।....
त्यागो महेंद्र के आसन को
मानवता करती है पुकार
अगणित महेंद्र फर्जी नरेंद्र
विस्मृत कर जन के सरोकार
करते कुत्सित अरु कुटिल काम
इन सबको दे दो चिर विराम।।....
नन्दिनियाँ करती त्राहिमाम!!!
बढ़ते जाते हैं सहसबाहु
क्या दानवदल फिर जीतेगा
विजयी होंगे फिर केतु राहु
फिर करो धरित्री दुष्ट हीन
फिर परशु उठाओ परशुराम!!!
होती अबलाएं नित्य हरण
क्यूँ फिर से आते नहीं राम
दुस्साशन करते अट्टहास
पटवर्धन करते नहीं श्याम
भारती न होवे तेजहीन
जागे कल का सूरज ललाम!!!
सुरेश साहनी
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