इक सुहानी सी ग़ज़ल है।

वो रवानी सी ग़ज़ल है।।

तैरती है ख़ुशबुओं में 

रातरानी सी ग़ज़ल है।।

हुस्न उनका है कि उनकी

तर्जुमानी सी ग़ज़ल है।। 

ज़ीस्त के रंजो-अलम में

शादमानी सी ग़ज़ल है।।

गो सुबह से शाम ढलती

ज़िंदगानी सी ग़ज़ल है।।

बेजुबाँ हम इश्क़ वालों- 

की ज़ुबानी सी ग़ज़ल है।।

आग है दुनिया की फितरत

और पानी सी ग़ज़ल है।।

चल रही है जो अज़ल से

उस कहानी सी ग़ज़ल है।।


सुरेशसाहनी,कानपुर

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