भूल कर अपनी विरासत चल पड़ो।
दूर करनी है ज़हालत चल पड़ो ।।
चल पड़ो ऐ अहले मिल्लत चल पड़ो।
वक़्त की समझो नज़ाकत चल पड़ो।।
खेत से खलिहान से बागान से
छोड़ दो जड़ से मोहब्बत चल पड़ो।।
जल ज़मीं जंगल तुम्हारे हैं मगर
क्या तुम्हारी है अदालत चल पड़ो।।
जान पहले है ज़मीनें बाद में
ताज़िरों की है हुकूमत चल पड़ो।।
उनपे फरियादों का क्या होगा असर
उनकी आँखों में हैं वहशत चल पड़ो।।
बोलना जब आये दौरे-इंकलाब
आज चुप की है ज़रूरत चल पड़ो।।
अपने बच्चों को पढ़ाओ खुद पढ़ो
कब तलक झेलोगे जिल्लत चल पड़ो।।
सुरेशसाहनी, कानपुर
Comments
Post a Comment