जब कभी रोशनी बिखेरा कर।
कुछ इधर भी निगाह फेरा कर।।
मुद्दतों बाद आस जागी है
मेरे हिस्से में भी सवेरा कर।।
अक्स उम्मीद के दिखें जिनमे
हो सके चित्र वह उकेरा कर।।
महफ़िलो में तलाश मत खुद को
जा बियावान में बसेरा कर।।
वक़्त गुज़रा न हाथ आता है
उस को आगे से आ के घेरा कर।।
घर बनाएगा टूट जायेगा
रोज़ ख़ानाबदोश डेरा कर।।
तुझमें पिन्हा है आफ़ताब कई
देखना है तो कुछ अंधेरा कर।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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