यूँ सरे रात जागता क्या है।

मौत का इससे वास्ता क्या है।।

नींद आखों से भाग जाती है

नींद आने का रास्ता क्या है।। 

ये अंधेरे में छोड़ जाएगा

कद को साये से नापता क्या है।।

एक छत के तले हैं हम दोनों

फिर दिलों का ये फासला क्या है।।

मौत से मुस्कुरा के मिलता हूँ

तब ये तकलीफ ये बला क्या है।।

हमपे इल्ज़ाम बेवफाई के

तुझको मालूम है वफ़ा क्या है।।

उम्र के साथ सीख जाऊंगा

क्या बुरा है यहां भला क्या है।।

*सुरेश साहनी, कानपुर*

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है