चलो ये मान के सो जाते हैं

वो सुबह कभी तो आएगी

और फिर ऐसी भी जल्दी क्या है

रात कुछ और भी ख्वाबीदा हो

रात कुछ और हो तस्कीन भरी

रात कुछ और भी लंबी हो तो

बेहतर इससे जियादा क्या है

अपना तो दिन भी हमें

रात नज़र आता है

दूर तक जिसका सबेरा ही नहीं 

वो सबेरा जहाँ हम आँख अगर खोले तो

दूर तक पसरी हुयी हरियाली

प्यार आँखों में लिए घरवाली

रात का देती उलहना बोले

 बस यही काम बचा है तुमको

बाबूजी जाग गये तुम भी उठो

हमको पनघट पे भी जाना है कहीं माँ न जगे

और सखियां भी हमे देख के हंसने न लगे

ख़ैर ये ख़्वाब है ये ख़्वाब बना रहने दो

ख़्वाब में ही सही

 कुछ देर तो जी लेने दो

हम हैं मज़दूर जगे भी तो 

भला किसके लिए

सुबह उठते ही

 नियामत नहीं मिल जानी है

हमको मालूम है

वो सुबह नहीं आनी है।।

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