वह दिन भारतीय लोकतंत्र का काला दिन होगा जिस दिन सीबीआई और पुलिस स्वतन्त्र अर्थात निरंकुश हो जाएगी । अभी सरकार का अंकुश है तब जाँच संस्थायें और पुलिस के अत्याचार आम है । निरंकुश होने पर उसकी भूमिका देश में इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर देगी । कोई भी संवैधानिक पद या संवैधानिक संस्था निरंकुश नहीं होनी चाहिए । अपने देश के संविधान में अच्छाई है कि हर संवैधानिक संस्था स्वायत्त होते हुए एक दुसरे के प्रति जबाबदेह भी है । व्यवस्थापिका ,कार्यपालिका और न्यायपलिका तीनों स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं ,लेकिन जनता के प्रति सभी जबाबदेह भी हैं । जनता का मूर्त रूप उनके प्रतिनिधि होते हैं । इसलिए उनकी सर्वोच्चता को मान्यता दी गयी है । किन्तु उसमे भी सभी एक दुसरे के प्रति जबाबदेह हैं । आज तोताराम जी ने अपनी लाचारी दर्शायी है । लेकिन यही तोताराम जब चारा घोटाले के समय डी आई जी थे तब इन्होने कई नेताओं को बचाने का काम किया था । अगर यह ईमानदारी से अपना कार्य करते और खुद को लोक कार्यकारी समझते तो आज सुप्रीम कोर्ट से फटकार ना खाते ।
भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील
अमवा के बारी में बोले रे कोयिलिया ,आ बनवा में नाचेला मोर| पापी पपिहरा रे पियवा पुकारे,पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल गगरिया मोर निरमोहिया रे, छलकल गगरिया मोर||........... छलकल .... सुगवा के ठोरवा के सुगनी निहारे,सुगवा सुगिनिया के ठोर, बिरही चकोरवा चंदनिया निहारे, चनवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, . छलकल .... नाचेला जे मोरवा ता मोरनी निहारे जोड़ीके सनेहिया के डोर, गरजे बदरवा ता लरजेला मनवा भीजी जाला अंखिया के कोर निरमोहिया रे, . छलकल .... घरवा में खोजलीं,दलनवा में खोजलीं ,खोजलीं सिवनवा के ओर , खेत-खरिहनवा रे कुल्ही खोज भयिलीं, पियवा गईले कवने ओर निरमोहिया रे, छलकल ....
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