सिर्फ़ अपनी कविता
कविता नहीं होती
मन मष्तिष्क में उठते गुबार
भावों के उठते गिरते ज्वार
कूड़ा कचरा भी
हो सकते है
औरों को भी पढ़ो
तुम्हारी सोचने की सीमाओं से परे
बहुत अच्छा या बुरा
और कुछ नितान्त भिन्न
ऐसा ज़रूर मिलेगा
जो तुम्हारी सोच
या सोचने की दिशा
बदल देगा!!!
सुरेशसाहनी
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