लेकर हमदर्दों के साये 

घूमा लादे दर्द पराये।।

कुछ यादें कुछ ज़ख्म पुराने

कुछ लेकर ग़म के सरमाये ।।

ये भी इक ज़हमत लगता है

उस भूले को कौन भुलाये।।

शहतीरें  टिकती क्या लेकर

ढहते घर के जर्जर पाए ।।

हम टूटे दिल क्या बदलेंगे

कितना कोई मन बहलाये ।।

सुनते हैं मन हल्का होगा

कोई आकर हमें रुलाये।।

अब जीवन भारी लगता है

दिल भी कितना बोझ उठाये।।


सुरेश साहनी

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