आप अक्सर तलाश करते हैं।

कौन सा दर तलाश करते हैं।।


कितने नादान हैं लुटेरों में

आप रहबर  तलाश करते हैं।।


जबकि ईश्वर  की है तलब लेकिन

लोग पत्थर तलाश करते हैं।।


अपने अंदर तलाशिये उसको

जिसको बाहर तलाश करते हैं।।


प्यास इतनी बड़ी नहीं फिर भी

हम समन्दर तलाश करते हैं।।


पीठ पीछे सुना है कुछ अपने

रोज़ खंजर तलाश करते हैं।।


जबकि दुनिया सराय फ़ानी है

वो मेरा घर तलाश करते हैं।।


बंट चुकी है ज़मीं कबीलों में

कोई अम्बर तलाश करते हैं।।


साहनी हैं कि आपदा में भी

एक अवसर  तलाश करते हैं।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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