मैं मुट्ठी मुठ्ठी धूप लिए तिमिरांगन खोजा करता हूँ।
प्रायः रिश्तों की सर्दी में कुछ जीवन जलते देखे हैं
निर्धनताओं में ठिठुरे से समझौते पलते देखे हैं
ऐसी अंधेरी कुटियों में नवजीवन बांटा करता हूँ।।........
सत्ता निर्धन की थाली में केवल भूख परोसा करती है
सत्ता जिस पर भोली जनता दिन रात भरोसा करती है
उन बूटों उसी भरोसे का नित मर्दन देखा करता हूँ।।
सुरेश साहनी, Kanpur
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