फिर लरजते हुए होठों पे हँसी आयी है।

फिर सहमते हुए इस घर मे खुशी आयी है।।


नूर इतना भी नहीं है कि इसे दिन कह दें

हाँ मगर सच है अंधेरों में कमी आयी है।।


अब कहाँ अश्क़ कि तस्दीक करें तेरे ग़म

पर तुझे देख के आँखों में नमी आयी है।।

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