तुम किसी से भी निभा कर खुश हो।

या मेरे दिल ही दुखाकर खुश हो।।


मुझ से बेहतर कोई पाकर खुश हो।

या फ़क़त मुझ को सता कर खुश हो।।


सच कहो भूल के खुश हो मुझको

या मेरी याद में आकर खुश हो।।


तुम दुआओं में मेरी अब भी हो

तुम भले अपनी जफ़ा पर खुश हो।।


प्यार ठुकरा के कहीं प्यार मिला

या की ज़रदार को पाकर खुश हो।।


सुब्ह सूरज की सुआओं में रहो

शाम हो चाँद उगा कर खुश हो।।


मेरे आगोश में रहकर खुश हो

या बड़ी सेज पे जाकर खुश हो।।


तुम मेरे दिल मे थे बेहतर या फिर

खुद को बाज़ार बना कर खुश हो।।


अपने ग़म का मुझे अफसोस नहीं

ज़िन्दगी तुम तो बराबर खुश हो।।


सुरेश साहनी , कानपुर


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