क्यों ऐसा लग रहा था कि सुराज आ गया है।

पूरी तरह स्वदेशी अंदाज आ गया है।।

अपने ही घर से बेघर, अपने ही दर से बेदर

क्या ईस्ट इंडिया का फिर राज आ गया है।।

जनतंत्र था जो पहले अब है दे मोय कुर्सी

शायद मेरे वतन में फिर ताज आ गया है।।

दुनिया को ये बता दो भारत नहीं मिटेगा

भारत को ज़िन्दगी का अंदाज़ आ गया है।।

रह जायेगा हमारा भारत बाजार बनकर

निगमीकरण नहीं ये परराज आ गया है।।

मजदूर पिट रहे हैं वो किसान मर रहे हैं

हे राम कैसे माने तेरा राज आ गया है।।


सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है