जिस ने मानी तेरी हस्ती प्रभु जी।

जान उसकी है क्यों सस्ती प्रभु जी।। 

अब तो तूफां से कहो सब्र करे

अब किनारे पे है कश्ती प्रभु जी।।

इक महीना तो बनाते जिसमें

मय कटोरे में बरसती प्रभु जी।।

आप भी उनसे मिले लगते हो

वो ख़ुदाओं की है बस्ती प्रभु जी।।

ज़ीस्त में कैसे उलझ बैठे हम

भूल कर मौत की मस्ती प्रभु जी।।

जब फ़कीरी में है कुर्बत तेरी

क्यों बनाई ये गिरस्ती प्रभु जी।।

सुरेश साहनी ,कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है