क्या बतायें कि क्या बता आये।
हाँ उसे दर्दे-दिल सुना आये।।
इसके आगे ख़ुदा की मर्जी है
हम यहां तक तो बावफ़ा आये।।
ये तड़प आसमान तक पहुंचे
कम से कम कुछ तुम्हे मज़ा आये।।
क्या क़यामत का इन्तेज़ार करे
आज ही क्यों न कुछ किया जाये।।
एक घर प्यार का बना डालें
बर्क़ टूटे कि ज़लज़ला आये।।
इश्क़ पेशा नहीं कि फ़िक्र करें
हम तो दिल भी कहीं गुमा आये।।
हुस्न इतना गुरूर ठीक नहीं
इश्क़ बाज़ार में न आ जाये।।
सुरेश साहनी कानपुर
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