मैं जो भी लिख रहा हूँ सब है बहर से बाहर।

गलियों तलक से ख़ारिज बिल्कुल शहर से बाहर।।

आशिक़ औ शायरों के है हाल एक जैसे

ये उनके दिल से बाहर ये अपने घर से बाहर।।

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