फ़िज़ां बदली बदल गए तुम भी।

सबके जैसे निकल गए तुम भी।।

काफिलों से उम्मीद क्या करते

मौसमों से मचल  गये तुम भी।।

जैसे घूरे के दिन बहुरते है वैसे

दौर आया तो चल गये तुम भी।।

हमने सोचा की तुम खरे होंगे

खोटे सिक्के निकल गए तुम भी।।

तुमसे उम्मीद थी सम्भालोगे

और सागर में ढल गये तुम भी।।

सुरेशसाहनी,कानपुर


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