ईश्वर हमसे जाने कब का रूठ गया होता।

यदि फ़रेब का दामन हमसे छूट गया होता।।


ताजमहल शाही शानो-शौक़त का दर्पण है

प्रेम महल होता तो कब का टूट गया होता।।


अल्ला ईश्वर समझदार हैं छुप कर रहते हैं

वरना  इनका भांडा कबका फूट गया होता।।


वक़्त फ़कीरों के डेरे तक लूटा करता है

बारी होती तो हमको भी लूट गया होता।।


सच का जलवा होता झूठे ताज़ नहीं पाते

अगर तेरे दोज़ख में कोई झूठ गया होता।।


सुरेश साहनी,अदीब कानपुर

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