आँख चुराना मौजूदा हालातों से।
गद्दारी है इन्सानी जज़्बातों से।।
भूखे नङ्गे लोग नहीं हैं सड़कों पर
कुछ तो सीखो अबके अख़बारातों से।।
सच के दो अल्फ़ाज़ बोलने बेहतर हैं
झूठ की इन लम्बी चौड़ी बारातों से।।
अश्कों की बारिश से भीगे भीगे हो
आगे बचना बेमौसम बरसातों से।।
दिन के अंधियारों का खौफ नहीं लेकिन
डर है शहरों की उजियारी रातों से।।
Comments
Post a Comment