जिन्दगी के चार दिन को तुमने दो दिन कर दिया।

कितनी आसानी से अपनी हां को लेकिन कर दिया।।

इस कदर खामोश शिरकत मैं कभी करता न था

पर तुम्हारी बेनयाजी ने ये मुमकिन कर दिया।। सुरेश साहनी

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