ख़बर तो थी मगर अख़बार में नहीं पहुंची।

वो चीख़ जो कभी दरबार में नहीं पहुंची।।

के कारवां में भी लुटती रही तमन्नाएं

उरूज़ क्या कहें मैय्यार में नहीं पहुंची।।

जिसे मैं चाहता था वो मेरी ग़ज़ल निकली

सलीकेदार थी बाज़ार में नहीं पहुंची।।

वो होती तो न जाने कितनी ज़िन्दगी देती

जो ज़िन्दगी कभी संसार में नहीं पहुँची।।

सुरेशसाहनी

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