छोडो यार साहनी जी विद्वान मत बनो।
अपनी चादर में रहो ढेर जिब्रान मत बनो।।
रामकहानी लिख तुलसी ना बन जाओगे
भक्ति भावना में बहि के रसखान मत बनो।।
अंडा जैसे फूट पड़े , एक देश बन गए
पैजामा में रहो चीन जापान मत बनो।।
हमे पता है गुड़ के बाप तुम्ही हो कोल्हू
मजा ले रहे हो , इतने अनजान मत बनो।।
पार नाव से हुए लौट विमान से आये
उतराई तो दो ज्यादा भगवान मत बनो।।
अबकी बार वोट को फिर से बेच न देना
पहचानो जानो तब दो अनजान मत बनो।।
Comments
Post a Comment