वे कहते हैं विद्रोही पहचान बेच दूँ।

कलम बेच दूँ मैं अपना ईमान बेच दूँ।।


आज भले ज़िंदा हूँ पर क्या बन पाया हूँ

अब तक पाने से ज्यादा खोता आया हूँ

बोल रहे हैं वे मैं अपनी शान बेच दूँ।।1

.

लोकतंत्र अब जाने किस पर टिका हुआ है

जिस पर करो भरोसा वो ही बिका हुआ है

ख़ुद्दारी की मैं भी आज दुकान बेच दूँ।।2.


भगत सिंह आज़ाद आज लगभग विस्मृत हैं

देश बेचने वाले ही अब सम्मानित हैं

मैं भी खुद को लेकर कुछ सम्मान बेच दूँ।।3.


गिरवी रख दूँ खुद को अपनी श्वास बेच दूँ

कफ़न बेच दूँ जनता का विश्वास बेच दूँ 

सोच रहा हूँ जनगण का अभिमान  बेच दूँ।।4.


वे समाज को बेच सदन की जान बन गए

भगवानों को बेच स्वयं भगवान बन गए

क्या मैं अपने अन्दर का इंसान बेच दूँ।।5.

सुरेश साहनी, कानपुर

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