ये मत सोचो बनाने में लगे हैं।

सभी मौका भुनाने में लगे हैं।।

उतारे हैं कई ने अपने परचम

नया झंडा लगाने में लगे हैं।।

जिन्हें मौकों की बारीकी पता है

मढ़ी अपनी बजाने में लगे हैं।।

उतर जाओ ज़माने के चलन में

भला क्या आज़माने में लगे हैं।।

भला पुरखों के घर में क्या धरा है

समय भी आने जाने में लगे हैं।।

नया घर मिल रहा है लाज कैसी

बुरा तो घर पुराने में लगे हैं।।

बड़े अहमक़ हैं दानिशवर यहाँ के

विरासत को बचाने में लगे हैं।।

उड़ा लो बाप दादों की नियामत

मशक्कत तो कमाने में लगे हैं।।

सुरेश साहनी

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