धूल में मिल गयी भावना आस की।
डोर टूटी नहीं किंतु विश्वास की।।
*
रास की आस में रासवन में फिरे,
ज्यूँ मधुप रूप के अंजुमन में फिरे
मन के आँगन की तुलसी रही सूखती
भामिनी के बिना ज्यूँ भवन में फिरे
हों भले गोपियाँ संग सब कृष्ण के
राधिका के बिना क्या छटा रास की।।
प्रेम पाते कहाँ से अहंकार में
ज्ञान पाकर फँसे बीच मंझधार में
जाके उधौ से पूछो दशा योग की
जीत जिनको मिली प्रेम से हार में
राधिका प्राण है बाँसुरी देह है
श्याम अनुनाद है श्वास दर श्वास की।।
सुरेशसाहनी
Comments
Post a Comment