हम भी किससे इश्क़ का इज़हार कर बैठे।

ख़ुद को ही रुसवा सरेबाज़ार कर बैठे।।


नींद जैसे सौत बनकर दूर जा बैठी

हम भी किस क़ातिल से आँखे चार कर बैठे।।


इश्क़ पा लेना असल मे कामयाबी है

दिल को देकर ख़ुद को हम बेकार कर बैठे।।


सब तो कहते हैं कि तुम खुशहाल थे लेकिन

क्या पड़ी थी ग़म का कारोबार कर बैठे।।

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