इश्क में और हमने जाना क्या।

इश्क़ हो जाए तो ज़माना क्या।।

जहाँ परिंदे भी पर न मार सके

उस जगह आशियाँ बनाना क्या।।

दोस्त ही आजमाए जाते हैं

किसी दुश्मन को आज़माना क्या।।

यार पत्थर के दिल नहीं होता

एक पत्थर से दिल लगाना क्या।।

दिल के बदले में दिल ही मिलता है

इसमें खोना नहीं तो पाना क्या।।

इश्क़ को इससे कोई फ़र्क नहीं

ताज  क्या है गरीबखाना क्या।।

हमने तो हाल दिल का जान लिया

आज हमसे नज़र चुराना क्या।।

चार दिन की है जिंदगानी भी

और इसमें नया पुराना क्या।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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