हुस्न जब आशिक़ी से रूठ गया।

इश्क़ तब ज़िन्दगी से रूठ गया।।


तिश्नालब मयकदे से हम लौटे

जाम भी तिश्नगी से रूठ गया।।


झील को देखकर वो क्या मचली

कोई सागर नदी से रूठ गया।।


इश्क़ अपने उरूज़ पर आकर

जाने क्यों बेख़ुदी से रूठ गया।।


बन संवर के वो ख़ूब आया था

पर मेरी सादगी  से रूठ गया।।


ये नए दौर की क़यामत है

हुस्न पाकीज़गी से रूठ गया।।


हम उसे किसलिए ख़ुदा कह दे

जो मेरी बन्दगी से रूठ गया।।


उस गज़लगो से ये उम्मीद न थी

वो मेरी शायरी से रूठ गया।।


साहनी में कोई तो जादू है

मानकर भी खुशी से रूठ गया।।


साहनी सुरेश, कानपुर वाले

9451545132

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